आज हर कोई इंडिया-पाकिस्तान मैच देखने, चर्चा रखने, शोर मचाने या समर्थन देने में व्यस्त है। स्टेडियम भर जाते हैं, घर-गांव-मोहल्ले एक साथ मैच देखते हैं, सोशल मीडिया पर हर कोई इसका विश्लेषण करता हुआ नजर आता है। लोगों ने इसे राष्ट्रीय गर्व, तनाव, जुनून, खेल और प्रतिस्पर्धा का नाम दिया हुआ है। लेकिन असली युद्ध कोई बाहरी मुकाबला नहीं, जीवन-मरण का युद्ध है — वही युद्ध जो हर एक जीव भीतर जीता आया है, जीता हुआ जाएगा, और उसी ने तय किया हमारा असली भविष्य कौनसा होगा – जीवन या मौत, सुख या दुःख, मोक्ष या बंधन?
भारत-पाक मैच एक अस्थाई मुकाबला है, इसका असर अधिकतर चंद दिनों तक ही रहता है। कोई जीता, कोई हारा, शोर हुआ, तालियां बजीं, फिर सब सामान्य जीवन जीने लगें। लेकिन जीवन-मरण का युद्ध अनंत है, इसका असर शाश्वत रहता है। यह युद्ध बाहरी स्टेडियम या टेलीविजन स्क्रीन पर नहीं खेला जाता, इसका मैदान हमारा जीवन ही है – हमारा तन, हमारा मन, हमारी आत्मा। यहाँ कोई बाहरी टीम नहीं खेल रही, यहाँ हम स्वयं ही योद्धा हैं, स्वयं ही शासक या पराजित होने वाले हैं।
यह युद्ध असली इसलिए है, क्योंकि इसका संबंध जीवन जीने या जीवन खोने से है, इसका संबंध शांति या असंतोष, मोक्ष या 84 लाख योनि चक्र से है। इसका कोई स्कोरबोार्ड नहीं, कोई ट्रॉफी नहीं, कोई अस्थाई शाबाशी नहीं। इसका निर्णय शाश्वत है, इसका असर अनंत तक साथ जाएगा।
अब प्रश्न यह है – इस असली युद्ध का मुकाबला हम कैसे करेंगे? इसका मुकाबला बाहरी साधनों या शस्त्रों से नहीं किया जा सकता, इसका मुकाबला साधना, ज्ञान, सत्संग, सतगुरु की शरण और भक्ति से किया जाता है। एक पूर्ण सतगुरु ही हमें जीवन-मरण के चक्र से बाहर निकलने का मार्ग बता सकता है। वही हमें असली शांति, सुख, मोक्ष, परम पद की अनुभूति करवाकर जीवन-मरण पर विजय दिला सकता है।
गौर किया जाये, जीवन-मरण कोई साधारण विषय नहीं है; इसका संबंध अनंत जीवन, अनंत सुख या अनंत दर्द से है। बाहरी मुकाबलों ने अस्थाई गर्व दिया, अस्थाई शांति दी, पर असली शांति वही है जो जीवन-मरण पर विजय मिलने पर आती है।
आज एक ही पूर्ण मार्गदर्शक हैं — जगद्गुरु संत रामपाल जी महाराज — जो साधना, शास्त्र ज्ञान, भगवान् की वास्तविक भक्ति, साधना विधि, और जीवन जीने का असली लक्ष्य बता रहे हैं। उनके मार्गदर्शन से साधक जीवन-मरण पर विजय पा रहे हैं, चौरासी लाख योनियों की यातनाओं से मुक्त होकर परम शांति, परम मोक्ष की अनुभूति कर रहे हैं।
यह युद्ध कोई बाहरी शत्रुओं या देशों से नहीं, बल्क़ि आंतरिक शत्रुओं – क्रोध, अहंकार, मोह, लालच, काम इत्यादि से है। एक बार इसका नाश किया, जीवन ने नया रूप ले लिया, साधक ने शांति, सुख, मोक्ष पा लिया।
इसलिए आओ, बाहरी मुकाबलों, अस्थाई शोरगुल से बाहर निकलो, असली युद्ध पर नजर डालो, वही युद्ध जीतो जो जीवन-मरण तय करता है। इसका मार्ग साधना, ज्ञान, सतगुरु की शरण ही है। तभी जीवन सफल होगा, आत्मा परम शांति पाएगी, चौरासी लाख योनियों से मुक्ति पा जाएगी — जैसा कि जगद्गुरु संत रामपाल जी महाराज ने साध-संगत तक पहुंचाकर किया हुआ है।
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