आज हर व्यक्ति जीवन की समस्याओं, मुश्किलों, असंतोष, तनाव और भ्रमजाल में घिरा हुआ है। जीवन एक पहेली जैसा लगने लगा है — कोई नहीं जानता असली सुख, शांति, मोक्ष या जीवन-मुक्ति का मार्ग कौनसा है? अधिकतर लोगों ने साधुओं, पुजारियों, धर्मगुरुओं, मांत्रिकों इत्यादि पर विश्वास किया, उनके आदेश अनुसार साधनाएँ अपनाई, पूजाएँ किया, व्रत रखा, तीर्थ किए — फिर भी जीवन वहीँ का वहीँ रहा, समस्याएँ समाप्त नहीं हुईं, शांति नहीं आई, परमेश्वर तक पहुंचने का मार्ग नहीं मिला। इसका मुख्य कारन है शास्त्रविपरीत साधना, गलत मार्गदर्शन, अधूरा ज्ञान, अधिकतर साधुओं का शास्त्र ज्ञान से अनभिज्ञ होना — जिसके कारन साधक अधिकतर जीवनभर भटकता ही रहता है।
जगदगुरु संत रामपाल जी महाराज जी ने शास्त्राधारित साधना बता कर असंख्य साधुओं, साधिकाओं, स्त्रियों, पुरुषों, बूढ़े, जवान — सभी वर्गों का जीवन बदल दिया। उनके ज्ञान ने लोगों की मानसिक शांति, सुख, स्वास्थ्य, जीवन जीने की दिशा तय किया, जीवन-मरण चक्र से बाहर निकलने का मार्ग दिया।
शास्त्र ही असली मार्गदर्शक है
गुरु वही है जो शास्त्र अनुसार साधना देता है, शास्त्रविपरीत साधना से साधक अधिकतर भटक जाते हैं, उनके जीवन अधिक असंतुलित होने लगते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी ने वेद, पुराण, गीता, बाइबल, कुरान इत्यादि शास्त्रों का संदेश दिया — एक परमेश्वर है, वही सृष्टि करता है, वही पालन करता है, वही नाश करता है, वही जीवन-मरण चक्र से बाहर निकालने की क्षमता रखने वाला असली परमेश्वर है। उनके आदेश अनुसार साधना अपनाकर साधक धीरे-धीरा असंतुलन, असंतोष, तनाव से बाहर निकलने लगाता है, जीवन अधिक सुखद, शांति पूर्ण होने लगाता है।
जीवन-मरण चक्र से मुक्ति केवल पूर्ण साधु ही देता है
आज अधिकतर साधु, पुजारी साधना मार्ग पर लोगों का मार्गदर्शन शास्त्र अनुसार नहीं कर रहे, इसका कारन उनके भीतर शास्त्र ज्ञान ही नहीं है। एक असंपूर्ण साधु साधकों का कल्याण नहीं कर सकता — इसका उदाहरण शास्त्रों ने दिया हुआ है, “अज्ञान साधु जीवन भर साधना करवाकर साधकों की साधना व्यर्थ ही करवाता आया।”
परन्तु एक पूर्ण साधु वही होता है जो शास्त्रसम्मत साधना देता है, वही साधक की साधना शांति, सुख, मोक्ष तक पहुंचाती है। वही साधु साधक की जीवन-मरण चक्र, सुख-दुख, असंतोष, मानसिक तनाव इत्यादि समस्याओं का समाधान करता है, जैसा कि संत रामपाल जी महाराज जी ने किया हुआ है। उनके शिष्य इसका जीता-जागता उदाहरण हैं — उनके जीवन बदल रहे हैं, मानसिक शांति आई, जीवन अधिक सुखद हुआ, उनके साधना ने उन्हें परमेश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिया।
शरण ही साधना मार्ग की नींव है
कबीर साहिब ने भी किया आदेश दिया — “गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांव, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया दिखाय।” इसका अर्थ हुआ जीवन मार्ग पर पहले एक पूर्ण साधु की शरण लेनी चाहिए, वही साधु साधना मार्ग तय करता है, वही परमेश्वर तक पहुंचाता है।
निष्कर्ष — साधु ही जीवन की पहेली सुलझाता है
आज जीवन असंतुलित, असंतुष्ट, तनावपूर्ण, मुश्किलों से घिरा हुआ है — इसका कारन शास्त्रविपरीत साधना, असंपूर्ण साधुओं पर विश्वास, असली मार्गदर्शक न मिलने जैसा ही है। एक पूर्ण साधु — जो शास्त्र अनुसार साधना देता है — वही जीवन की पहेली सुलझा देता है, साधक का मार्ग साफ करता है, सुख, शांति, मोक्ष प्रदान करता है।
जगदगुरु संत रामपाल जी महाराज जी वही पूर्ण साधु हैं, जो शास्त्राधारित साधना प्रदान कर रहे हैं, साधक उनके मार्ग पर चलते ही जीवन बदलने लगाता है, मानसिक शांति, सुख, मोक्ष, जीवन-मुक्ति सुनिश्चित होने लगाती है। इसलिए जीवन की असंतुलन, असंतोष, तनाव, भटकन तभी समाप्त होती है, जब एक पूर्ण साधु शरण देता है — वही साधु जीवन रूपी पहेली सुलझाकर साधक की आत्मा का कल्याण करता है।
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