आज की दुनिया अनेक अनसुलझे रहस्यों से घिरी हुई है — जीवन-मरण, आत्मा-परमात्मा, सृष्टि की रचना, सुख-दुख का असली कारन इत्यादि। साधारण ज्ञान या विज्ञान इन प्रश्नों का पूर्ण समाधान नहीं दे पाया है, जिसके कारण लोगों ने तरह-तरह की भ्रांतियों, परंपराओं और अज्ञानपूर्ण साधनाओं का सहारा लिया हुआ है। लेकिन एक दिव्य ज्ञान देने वाले साधु, जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी ने शास्त्राधारित साधना, ज्ञान और मार्ग दिया है, जो इन अनसुलझे रहस्यों पर पूर्ण प्रकाश डालता है。
जीवन-मरण का असली कारन
संत रामपाल जी महाराज जी ने शास्त्रों — वेद, गीता, पुराण — के संदेशों की व्याख्या किया है, जिसके अनुसार जीवन-मरण कोई साधारण चक्र नहीं है, इसका कारन “जन्म-मरण” नामक कारागृह या काल ने किया हुआ बंधन है। हम सभी जीव आत्माएँ असली घर सतलोक से आई थीं, परन्तु अवज्ञा होने पर हम यहाँ काललोक या ब्रह्माण्ड में गिर गए। यहाँ हम सुख या शांति नहीं पा सकते, क्योंकि यहाँ हर जीव मृत्यु, बुढ़ापे, दर्द, शोक, असंतोष जैसे चक्र में घिरा हुआ है। इसका असली कारन साधना विधि का गलत होना ही है, जो लोगों ने शास्त्रविपरीत अपनाई हुआ है。
सृष्टि की असली रचना
जगदगुरु ने शास्त्रों से इसका खुलासा किया है कि सृष्टि कोई स्वतः नहीं आई, इसका एक आदेश देने वाली परमेश्वर शक्ति है — वही पूर्ण परमेश्वर या सत् पुरुष है। वही शांति, सुख, मोक्ष देने वाली सर्वोच्च शक्ति है। अधिकतर लोगों ने आंशिक देवताओं, जैसे ब्रह्मा, विष्णु, शंकर या अधिकतर साधुओं, ऋषियों की पूजा शुरू किया हुआ है, जबकि ये सभी काल या काललोक के तहत काम कर रहे हैं। इसलिए उनके पूजन से साधक जीवन-मरण चक्र से बाहर नहीं निकल पाता। असली साधना वही है जो शास्त्रानुसार एक पूर्ण साधु या सतगुरु, जो पूर्ण परमेश्वर (कबीर साहिब) की शरण दिलाता है, उनके मार्गदर्शन से किया जाये。
आत्मा-परमात्मा का सम्बन्ध
संत रामपाल जी महाराज जी शास्त्रों की वाणी द्वारा बताते हैं कि हर जीव आत्मा परमेश्वर का अंश है, परन्तु काल ने जीवात्माओं पर भ्रम डाल दिया, जिसके कारण जीव भूल गया कि वही परमेश्वर का पुत्र या शांति स्वरूप था। इसका समाधान केवल शास्त्राधारित साधना, नाम दीक्षा, सुमिरण, सत्संग, सेवा इत्यादि अपनाकर किया जा सकता है। तभी साधक परमेश्वर तक पहुंच पाता है, मोक्ष पा लेता है, जीवन-मरण, सुख-दुख, बुढ़ापा, रोग इत्यादि चक्र से बाहर निकल जाता है。
अनसुलझे प्रश्न, शांति और मोक्ष
आज तक साधुओं, ऋषियों ने साधना किया, पर अधिकतर ने परमेश्वर तक पहुंचने की असली विधि नहीं जानी, जिसके कारन अनगिनत साधक साधना, तप, व्रत, जप, योग इत्यादि साधनों में जीवन बिता रहे हैं, पर शांति या मोक्ष नहीं पा रहे। इसका मुख्य कारन शास्त्रविपरीत साधना ही है। परमेश्वर ने शास्त्रों (वेद, गीता, पुराण) में साफ किया हुआ है कि पूर्ण साधु या सतगुरु की शरण ग्रहण किए बिना कोई साधक मोक्ष नहीं पा सकता (गीता 4:34) — “तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।” इसका अर्थ हुआ, एक पूर्ण साधु की शरण जाओ, आदरपूर्वक उनके आदेश स्वीकारो, शंकाएँ समाधान करवाओ, वही साधु साधना विधि प्रदान करता है, जो जीवन-मरण चक्र से बाहर निकलने का मार्ग देता है。
निष्कर्ष
आज असंतुलन, शांति हीन जीवन, असंतोष, हिंसा, तनाव अधिकतर लोगों ने स्वीकार किया हुआ है, इसका मुख्य कारन परमेश्वर, साधना विधि, जीवन-मरण चक्र इत्यादि का असली ज्ञान न होना ही है। इसका समाधान केवल एक पूर्ण साधु या जगदगुरु ही बता सकता है, जिसने शास्त्राधारित साधना अपनाकर परमेश्वर की अनुभूति किया हुआ है — वही साधु इस कारागृह से बाहर निकलने का मार्ग बता सकता है।
संत रामपाल जी महाराज जी वही पूर्ण साधु हैं, जो शास्त्राधारित साधना बता रहे हैं, परमेश्वर तक पहुंचने, जीवन-मरण चक्र से बाहर निकलने, शांति, सुख, मोक्ष, जीवन-मुक्ति प्रदान करवाने वाले मार्ग पर लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। उनके ज्ञान ने असंख्य लोगों की जीवन दिशा बदल दी, उनके जीवन से तनाव, शोक, असंतोष मिटने लगे, मानसिक शांति आई, जीवन अधिक अर्थपूर्ण हुआ, उनके साधना ने परमेश्वर तक पहुंचने का मार्ग खोल दिया।
यदि कोई साधक शांति, मोक्ष, जीवन-मुक्ति चाहता है, जीवन-मरण चक्र से बाहर निकलना चाहता है, तो उसको चाहिए कि एक पूर्ण साधु की शरण ले, शास्त्राधारित साधना अपनाकर साधना मार्ग पर चले। तभी अनसुलझे रहे जीवन-मरण, सुख-दुख, परमेश्वर, साधना इत्यादि सभी प्रश्न हल होंगे, साधक शांति, सुख, मोक्ष पा जाएगा — जैसा कि शास्त्रों ने किया आदेश दिया है, “गुरु बिन गति नहीं।”
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