मनुष्य जीवन सबसे मूल्यवान अवसर है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि हम बार-बार जन्म क्यों लेते हैं, और मृत्यु के बाद कहाँ जाते हैं? जिस लोक में हम रहते हैं — जहाँ जन्म और मृत्यु होती है — क्या यह असली लोक हो सकता है?
संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने सत्संगों में इस प्रश्न का स्पष्ट और प्रमाणिक उत्तर दिया है। वे कहते हैं कि "जिस लोक में जन्म और मृत्यु है, वो असली नहीं हो सकता।" यह लोक एक अस्थायी, मरणशील स्थान है जिसे “काळ लोक” कहा गया है, और इसका स्वामी स्वयं “काळ ब्रह्म” है।1. असली लोक क्या है?
असली लोक वह है जहाँ जन्म और मृत्यु नहीं होती, जहाँ दुःख, रोग, बुढ़ापा, और पुनर्जन्म जैसी कोई चीज़ नहीं है। वह लोक सतलोक है — जिसे “अमर लोक”, “शाश्वत धाम” या “परम धाम” भी कहा गया है।
संत रामपाल जी महाराज जी बताते हैं कि सतलोक ही वह असली स्थान है जहाँ सत्य परमेश्वर कबीर साहेब स्वयं निवास करते हैं। वहाँ के जीव अजर-अमर हैं। वे कभी जन्म नहीं लेते, न मरते हैं।
कबीर साहेब जी का वचन है:
“जहाँ जनम मरण नाहीं, वोई अमर लोक कहाय।”
“जहाँ ना तृष्णा ना माया, वहाँ कबीर सदागुरु राय।”
2. यह लोक क्यों असली नहीं है?
हम जिस लोक में रहते हैं — पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल आदि — यह सब काळ ब्रह्म (ज्योति निरंजन) का बनाया हुआ अस्थायी लोक है। इसमें हर प्राणी जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है।
यहाँ कोई भी चीज़ स्थायी नहीं है — शरीर, धन, पद, परिवार सब एक दिन छूट जाते हैं।
यदि यह असली लोक होता, तो यहाँ अमरता होती, शांति होती, और दुख का कोई नामोनिशान नहीं होता।
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं:
“जिस स्थान पर जन्म और मृत्यु का चक्र चलता है, वह काल का लोक है, न कि भगवान का असली धाम। असली भगवान के धाम में जन्म नहीं होता, वहाँ सब जीव अमर हैं।”
3. काल लोक की रचना कैसे हुई?
ज्ञान गंगा पुस्तक में संत रामपाल जी महाराज जी ने बताया है कि जब काल ब्रह्म को सतलोक से निकाला गया, तो उसने अपने तप से यह लोक बनाया।
उसने जीवात्माओं को मोह और माया में बाँधकर अपने लोक में फँसा लिया। यहाँ हर जीव को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है — कोई अमीर, कोई गरीब, कोई सुखी, कोई दुखी।
परंतु ये सब माया का खेल है। असली सुख इस लोक में संभव ही नहीं है।
कबीर साहेब जी कहते हैं:
“यह संसार झूठा, माया का फंदा।”
“जो इसमें उलझा, वो मरण बंधा।”
4. क्या स्वर्ग या ब्रह्मलोक असली हैं?
लोग सोचते हैं कि अगर पृथ्वी असली नहीं है, तो शायद स्वर्ग या ब्रह्मलोक असली होंगे।
परंतु संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं कि ये भी मृत्युलोक का ही हिस्सा हैं।
स्वर्ग में जाकर भी जीव को आख़िर में जन्म-मृत्यु के चक्र में वापस आना पड़ता है।
वेदों और गीता में भी यह सत्य स्पष्ट लिखा है।
श्रीमत भगवद गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में श्री कृष्ण जी कहते हैं:
“आब्रह्म भुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥”
अर्थ: हे अर्जुन! ब्रह्मलोक तक जाने वाले सभी लोकों में जन्म-मृत्यु होती रहती है, केवल जो मेरे (परमेश्वर) लोक को प्राप्त होता है, वह कभी जन्म नहीं लेता।
इसका अर्थ यही है कि सतलोक ही असली है, बाकी सब अस्थायी हैं।
🌸 5. मृत्यु का रहस्य
मृत्यु वास्तव में आत्मा का शरीर बदलना है। शरीर मिट्टी से बना है, इसलिए नाशवान है। लेकिन आत्मा अजर-अमर है।
जब आत्मा इस लोक में आती है, तो उसे कर्मों के अनुसार जन्म-मृत्यु के चक्र में डाल दिया जाता है।
यह चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक जीव को सच्चा ज्ञान और सच्चा गुरु नहीं मिल जाता।
संत रामपाल जी महाराज जी उस सत्यज्ञान को सरल भाषा में समझाते हैं और बताते हैं कि असली मुक्ति केवल सतलोक की प्राप्ति से होती है।
6. असली ज्ञान क्या कहता है?
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं कि हमें धार्मिक ग्रंथों में छिपे गूढ़ सत्य को समझना चाहिए।
गीता, वेद, बाइबल, कुरान — सभी में संकेत दिया गया है कि यह लोक अस्थायी है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में दो प्रकार के परमात्मा बताए गए हैं —
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क्षर पुरुष (मृत्यु लोक का स्वामी)
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अक्षर पुरुष (ब्रह्मलोक का स्वामी)
और तीसरा है पुरुषोत्तम (सतलोक का स्वामी) — वही असली परमेश्वर कबीर साहेब हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं:
“यह संसार काल का बनाया हुआ है। जो इसका भेद जान लेता है, वही मुक्ति पा सकता है।”
7. असली सुख कहाँ मिलेगा?
हम जीवनभर सुख की तलाश में भागते रहते हैं — कभी धन के पीछे, कभी रिश्तों के पीछे।
परंतु यह सब क्षणिक सुख हैं।
असली सुख केवल उस लोक में है जहाँ मृत्यु नहीं, बुढ़ापा नहीं, रोग नहीं।
वहाँ आत्मा सदा परमात्मा के सान्निध्य में रहती है।
संत रामपाल जी महाराज जी के अनुसार, सतलोक में सब जीव प्रकाश शरीर वाले होते हैं, वहाँ भोजन या नींद की आवश्यकता नहीं होती। वहाँ केवल शांति और आनंद है।
8. सतलोक का वर्णन
सतलोक का विस्तार किसी ने पूरी तरह नहीं बताया, पर संत रामपाल जी महाराज जी ने ज्ञान गंगा में उसका सुंदर वर्णन किया है:
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वहाँ अनंत ज्योति का प्रकाश है।
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वहाँ के जीव दिव्य हैं, उन पर माया का प्रभाव नहीं।
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वहाँ कोई दुःख या अज्ञान नहीं है।
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वहाँ परमेश्वर कबीर साहेब सिंहासन पर विराजमान हैं, और उनके चारों ओर अनंत आत्माएँ आनंदमग्न हैं।
कबीर साहेब कहते हैं:
“जहाँ ना दिन, ना रात, ना दुख, ना रोग,
वहाँ सतलोक कहावत जोग।”
9. सतलोक कैसे पहुँचा जाए?
संत रामपाल जी महाराज जी स्पष्ट कहते हैं कि केवल सच्चे गुरु के द्वारा ही सतलोक का मार्ग प्राप्त होता है।
वो गुरु जो तीनों लोकों का ज्ञान रखता हो, जो शास्त्र प्रमाण के अनुसार भक्ति बताता हो, वही पूर्ण संत कहलाता है।
ऐसे संत को पाने के बाद जब जीव नाम दीक्षा लेता है और सच्चे नियमों का पालन करता है, तब वह काल लोक के बंधन से मुक्त होकर सतलोक जा सकता है।
कबीर साहेब कहते हैं:
“सतगुरु मिलै तो सब दुःख मिटे,
जन्म मरण का बंधन छूटे।”
10. निष्कर्ष
हम जिस लोक में रहते हैं, यह सपनों जैसा अस्थायी संसार है।
यहाँ जन्म है, मृत्यु है, मोह है, माया है — इसलिए यह असली नहीं हो सकता।
सच्चा लोक सतलोक है, जहाँ परमेश्वर कबीर साहेब स्वयं विराजमान हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी हमें यह सत्यज्ञान दे रहे हैं ताकि हम इस मरणलोक से मुक्त होकर अमर लोक की ओर बढ़ सकें।
जीव का उद्देश्य केवल यही होना चाहिए कि वह इस जन्म-मरण के चक्र से छूटकर परमात्मा के धाम तक पहुँचे।
उसके लिए सच्चे संत की शरण लेना और नाम दीक्षा प्राप्त करना ही एकमात्र मार्ग है।
अंतिम प्रेरणादायक संदेश
“जिस लोक में जन्म और मृत्यु है, वह असली नहीं हो सकता।
असली लोक वह है जहाँ आत्मा अमर है और परमात्मा साक्षात् है।
हे मानव! जागो, यह जीवन अमूल्य है।
संत रामपाल जी महाराज जी के सत्य ज्ञान को अपनाओ
और अपने असली घर — सतलोक — की यात्रा शुरू करो।”
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