जीवन की असली सच्चाई
आज का इंसान सुबह से शाम तक भाग रहा है — कोई नौकरी के लिए, कोई व्यापार के लिए, कोई शोहरत के लिए, और कोई रिश्तों में नाम कमाने के लिए। हर कोई इस जीवन की दौड़ में शामिल है, पर कभी सोचा है — इस दौड़ की मंज़िल क्या है?
कई लोग कहते हैं कि सफलता ही मंज़िल है, कुछ कहते हैं पैसा, कुछ कहते हैं परिवार। लेकिन अंत में जब जीवन का अध्याय समाप्त होता है, तब एक कटु सच्चाई सामने आती है — “ज़िंदगी भर भागे… लेकिन मंज़िल मौत निकली।”
संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग में यही गूढ़ रहस्य समझाया गया है कि मनुष्य का जीवन केवल कमाने, खाने और मर जाने के लिए नहीं है। यह जीवन परमात्मा को पहचानने और उसे प्राप्त करने का अनमोल अवसर है।
1. क्यों भाग रहा है इंसान?
इंसान का मन एक रेस में है। सुबह उठते ही मोबाइल, ऑफिस, ट्रैफिक, लक्ष्य, तनाव — यही उसकी दिनचर्या है।
हर व्यक्ति सोचता है — “थोड़ा और मेहनत कर लूं, बस फिर सुकून मिलेगा।”
लेकिन सुकून कभी नहीं आता।
क्योंकि सुकून बाहरी वस्तुओं में नहीं, परमात्मा की पहचान में है।
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं —
“मनुष्य हर वस्तु को पाने की कोशिश करता है, सिवाय उस एक के, जो उसे सब कुछ दे सकता है — सच्चा भगवान।”
2. मौत — वो मंज़िल जिसे कोई नहीं मानता
कोई भी व्यक्ति मौत की बात सुनना नहीं चाहता। सब अपने जीवन को अमर मान लेते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि मौत हर व्यक्ति की मंज़िल है।
चाहे राजा हो या भिखारी, करोड़पति हो या साधारण मजदूर — सबको एक दिन इस देह को छोड़ना ही पड़ता है।
संत रामपाल जी महाराज जी के अनुसार,
“जिस मंज़िल से हर कोई डरता है, वही मंज़िल असली है। क्योंकि वही इंसान को यह याद दिलाती है कि जीवन अस्थायी है, आत्मा शाश्वत है।”
जो व्यक्ति इस सत्य को समझ लेता है, वह जीवन का सही मार्ग चुनता है — भक्ति का मार्ग।
3. भक्ति ही असली मंज़िल है
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं कि इस संसार में कोई भी वस्तु स्थायी नहीं है।
धन, परिवार, प्रतिष्ठा — सब कुछ यहीं रह जाता है।
सिर्फ आत्मा आगे जाती है, और वही अपने कर्मों के अनुसार अगला जन्म पाती है।
इसीलिए वे समझाते हैं कि केवल सतभक्ति ही मनुष्य को जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कर सकती है।
यह सतभक्ति वही है जो कबीर परमेश्वर जी ने स्वयं दी थी, और आज वही परमेश्वर रूप में संत रामपाल जी महाराज जी इस पृथ्वी पर उपस्थित हैं।
“भक्ति के बिना जीवन ऐसा है जैसे फूल बिना खुशबू, और शरीर बिना आत्मा।”
4. दुनिया की दौड़ बनाम आत्मिक शांति
इंसान सोचता है कि पैसा सब कुछ है। लेकिन अगर पैसा सब कुछ होता तो करोड़पति भी खुश रहते।
आज करोड़ों कमाने वाले लोग भी रातों को नींद की गोली खा कर सोते हैं।
यह इसलिए क्योंकि उनके पास धन तो है, लेकिन मन की शांति नहीं।
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं —
“मनुष्य ने विज्ञान तो जीत लिया, लेकिन स्वयं पर विजय नहीं पाई। जिसने मन पर विजय पाई, वही सच्चा विजेता है।”
सच्चा सुख न तो विदेशों में है, न धन में, न शरीर के भोग में।
सच्चा सुख भक्ति में है, क्योंकि वहीं आत्मा अपने वास्तविक घर — सतलोक — की ओर लौटने लगती है।
5. कबीर साहेब का संदेश – असली मंज़िल सतलोक
कबीर परमेश्वर जी ने कहा था –
“साँई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय॥”
इस दोहे का गूढ़ अर्थ यह है कि इंसान को अपनी जरूरत जितना ही संग्रह करना चाहिए।
जो व्यक्ति लालच में पड़ गया, उसकी मंज़िल भटक गई।
जो व्यक्ति संत की शरण में गया, उसकी आत्मा सतलोक की ओर बढ़ी।
संत रामपाल जी महाराज जी बताते हैं कि सतलोक ही हमारी असली मंज़िल है।
यही वह अमर लोक है जहाँ न जन्म है, न मृत्यु, न बुढ़ापा, न दुख।
वहां परमात्मा स्वयं उपस्थित हैं, और आत्माएं सदा सुख में रहती हैं।
6. गलत पूजा से कैसे भटका इंसान?
आज अधिकतर लोग धर्म तो करते हैं, लेकिन प्रमाण से नहीं।
किसी ने कहा “यह देवता पूजा योग्य है,” किसी ने कहा “वह अवतार महान है।”
पर किसी ने भी शास्त्रों के अनुसार पूजा नहीं की।
संत रामपाल जी महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि
“शास्त्रविहीन भक्ति व्यर्थ है।”
गीता अध्याय 16 श्लोक 23–24 में भी यही कहा गया है कि जो व्यक्ति शास्त्र-विहीन आचरण करता है, उसे न सुख मिलता है, न सिद्धि, न परमगति।
इसलिए जरूरी है कि हम उस गुरु की शरण लें जो शास्त्रों के अनुसार भक्ति विधि बताए — और आज वह केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
7. जब मंज़िल बदल जाती है…
एक साधक जब सत्संग में आता है तो पहले सोचता है कि उसे केवल सुख चाहिए।
लेकिन जब ज्ञान सुनता है तो समझता है —
“सुख तो असली नहीं, अमरता असली है।”
जो लोग पहले केवल पैसा चाहते थे, अब वे भक्ति में रम गए।
क्योंकि उन्हें यह समझ आ गया कि जो चीज़ मौत के बाद साथ नहीं जाएगी, वह असली नहीं हो सकती।
इसलिए असली मंज़िल है — परमात्मा का लोक, सतलोक।
8. संत रामपाल जी महाराज जी का आह्वान
संत रामपाल जी महाराज जी बार-बार अपने प्रवचनों में कहते हैं कि —
“मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता। इसे केवल खाने-पीने में न गँवाओ। यह अवसर है भगवान को पहचानने का।”
उन्होंने बताया है कि भगवान कबीर साहेब जी स्वयं सर्वशक्तिमान हैं और वही सृष्टि रचयिता हैं।
जो उनके बताए मार्ग पर चलता है, वह मृत्यु के जाल से मुक्त हो जाता है।
9. मौत का डर क्यों मिट जाता है?
जब व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि वह आत्मा है, शरीर नहीं — तब उसे मौत का डर नहीं रहता।
क्योंकि उसे पता है कि मौत केवल शरीर की है, आत्मा अमर है।
जो आत्मा भक्ति करती है, वह सतलोक पहुँच जाती है और फिर कभी जन्म नहीं लेती।
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं —
“जो सच्चे नाम का जप करता है, उसे मौत छू भी नहीं सकती। वह अमर हो जाता है, जैसे पानी में कमल।”
🪶 10. निष्कर्ष – अब भी समय है
आज भी अवसर है, अगर हम समझें कि यह जीवन केवल भागने के लिए नहीं, जागने के लिए है।
हमने अब तक बहुत समय भौतिक सुखों के पीछे खो दिया, अब भक्ति के लिए समय निकालें।
क्योंकि अंत में हर किसी को एक ही सच्चाई का सामना करना पड़ेगा —
“ज़िंदगी भर भागे… लेकिन मंज़िल मौत निकली।”
लेकिन अगर हमने सही गुरु से सच्चा ज्ञान और नाम प्राप्त कर लिया, तो यही मौत हमारी मुक्ति का द्वार बन जाएगी।
संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आने से इंसान को पता चलता है कि असली मंज़िल “मौत नहीं, सतलोक” है।
11. संत रामपाल जी महाराज जी का अंतिम संदेश
“जो जन्मा है वह मरेगा,
पर जो सच्चा नाम जपेगा, वह कभी नहीं मरेगा।”
इसलिए अब भी समय है —
दौड़ बंद करो, ध्यान लगाओ।
भक्ति करो, सत्य पहचानो।
क्योंकि भगवान कबीर परमेश्वर स्वयं संत रामपाल जी महाराज जी रूप में धरती पर हैं और अपने बच्चों को सतलोक ले जाने का आह्वान कर रहे हैं।
निष्कर्ष सारांश
विषय | सन्देश |
---|---|
जीवन की दौड़ | अंतहीन, लेकिन व्यर्थ यदि भक्ति न हो |
मौत की मंज़िल | सभी के लिए निश्चित |
असली मंज़िल | सतलोक, जहाँ अमर सुख है |
मार्ग | संत रामपाल जी महाराज जी की शरण |
फल | जन्म-मरण से मुक्ति और सच्चा सुख |
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